जीने का सबब अब मुझ में बाकी न रहा
क्योकि मेरी आखो ने तेरे सपनो से नाता तोड़ लिया
ये ज़रूरी था मेरे लिए सच्चाई में जीना
इसलिए अँधेरी राहों से गुजरना छोड़ दिया
रहते है तन्हाई के साथ अब हम सदा
शायद इनसे अब दिल का रिश्ता है जोड़ लिया
कहने के लिए मेरे अपने थे बहुत
पर उन्होंने भी अब गैरो से रिश्ता जोड़ लिया
उम्मीदे कभी हकीकत क्यो नही होती
शायद उम्मीदों ने भी हकीकत का साथ छोड़ दिया
कच्चा धागा भी मजबूती की मिशाल बन जाता है
जब लोग पक्के धागों को जब कट के निकल जाते है
Wednesday, June 17, 2009
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3 comments:
"मेरी आखो ने तेरे सपनो से नाता तोड़ लिया
ये ज़रूरी था मेरे लिए सच्चाई में जीना"
उम्दा और कुछ मेरे भी दिल के बहुत करीब
Etne sare dardo ko ek sath maine pahli bar anubhav kiya.....
aisa laga jaise dil ki aawaj kalam k sath bahar aa gai hai.
sach much lajwab rachana hai....
yeh bahut hi acha likha hai aap ne,,,lagat hai jaise yeh aap ka khud ka kuch peersonal experince raha hai jo ki aap ne isme likha hai....
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