dosti ke ye pal......... kya sath rahege kal: पुरानी गलियों से !!!
पथ पर चल पड़े है, मंजिल की होड़ में
उन हजारो की भीड़ में एक मैं भी हु
पर क्या in सब में "मैं एक बन पाउगी
"या फिर भीड़ में, कही खो सी जाऊगी
अपना अस्तित्व मै खोजना चाहती हूँ
इस दुनियां को अपने baare me बताना चाहती हूँ
जानती हूँ की रास्ता आसन नही है
कांटे पत्थर और न जाने क्या क्या है
सब मेरे साथ आ गए है, मुझे रोकने के लिए
पर मुझे रुकना नही है इन सब को हराना है
समाज की गहरी खाहियो के आगे
एक मेरे सपनो का घरोदा है
मुझे वहां तक हरहाल में जाना है
पैरो में चुभ गये है कांटें कितने गहरे
पर अब निकलना नहीं कोई कांटा
क्योकि अब मैंने घुटनों के बल छुकना छोड़ दिया है
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