Friday, July 30, 2010

rasta .....

दरख्तों से मजबूत थे इरादे,
जब उन्होंने साथ चलने को कहा था,
कदम डगमगाने पर भी संभले थे अक्सर,
हवाओ का भी रुख मोड़ देने का,
आखिर जवां हौसला था,
मंजिल के हम बहुत करीब आ गए थे की....,
हवा के थपेड़ो ने, और किस्मत की चंद लकीरों ने
कुछ निभाया हमसे यू रिश्ता,
जिस मोड़ पर हम खड़े थे,
वहां से आगे जाने का कोई रास्ता न दिखा,
रास्ते ख़त्म हो गए थे,
उस झुरमुट और पुराने पीपल के आगे कोई रास्ता नही जाता था,
मैंने कहा शाम हो गयी है, इंतज़ार करेगे .....,
पर मंजूर न हुआ मेरी परछाई को, अंधेरो में मेरा साथ निभाना.......!!!
मुझे तन्हा छोड़ कर उसने जाना पसंद किया ,,,,,,
हम आज भी उसी मोड़ पर खड़े है ...
जहाँ से अब रास्ते तो कई जाते है,,,,
पर न जाने क्यों अब भी हम अनजान बने है,
अब...............................
रात का घना साया हो, या जगमग सबेरा,
आज भी हम उन अंधेरो में घिरे है,
जाने क्यों...............?????????

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