जिन्दगी क्या है ,कितनी बार
ये सवाल जेहन में आया है
कभी लगा धुप ही धुप है , रास्तों में
पर एक पल के लिए ,छाव जब भी पाया है,
बैठे एक पल , सुस्ताने के लिए
बदल के हटते ही , धुप को ही पाया है
फिर सोचा मैंने ............................!!
सूरज के आगे , ये बदल कब tik paya है
जिन्दगी में हमेशा उजाले क्यो नही होते ,
इस सवाल का भी , ज़वाब कुछ यू आया है
उजाले अंधेरे दो पहलू है एक सिक्के के ,
तो फिर क्यो अक्सर मैंने .......................!
दोनों पहलुओ को एक सा पाया है
सुना है हमने जिन्दगी जीने के लिए
एक मकसद होना जरुरी है
पर जिनके पास कोई मकसद नही होता
अक्सर ही चैन से जीते पाया है
जिन्दगी क्या है कितनी बार ये सवाल मेरे जेहन में आया है
Monday, March 23, 2009
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6 comments:
bahut accha
kafi acchi kavita hai
loksangharsha.blogspot.com
barabanki
Really bahut khoob kaha ki jinke pass koi maksad nhi unhe chain se sote paya hai....
lekin jaagne par unki kya halat hoti hai ese bayan kro to really jawab mil jaega ki jindgi kya hai
chhuna chahte hai manjil ko.
par rahen abhi lambi hai.
ek ek kadam se tay karni hai duri.
kyoki ahsas k liye manjil ko chhuna bhi to jaruri hai.....!!!
good.jari rakhen....
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